रविवार, 31 अगस्त 2014

लव वाला जेहाद

वो आया था मेरी ज़िंदगी में 
प्यार वाला , मीठा वाला 
इश्क़ वाला लव लिए 
समा गया था मेरे दिलमे 
बस 
अब उसने अपनी बारी खेली 
वो कुतरने लगा 
मेरा दिल 
जैसे चूहे अक्सर कुतर जाते हैं 
आलमारी में घुस 
कपड़ो को 
और फिर निकल जाते हैं 
चुपचाप 
वैसे ही 
ये जेहाद वाला लव भी 
मैंने अपने दिलकी आलमीरा से 
निकाल फेंका 
जैसे अम्मा फेंकती है 
फ्रीज से 
मिर्ची की पन्नी में से निकाल 
बेकार मिर्चियाँ 

manish bhartiya 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें